गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 40
नंदग्राम को दूर से देखकर रथारूढ़ नंदनंदन श्रीकृष्ण सबसे आगे होकर यादवों के साथ वहाँ आए। निकट पहुँच कर श्रीहरि ने देखा– पिता नंदराय जी एक सुसज्जित गजराज को आगे रख कर गोपों के साथ खड़े हैं। नृपेश्वर ! तरह–तरह के बाजे बजवाते, शंखनाद कराते, जय–जयकार की ध्वनि फैलाते नंदरायजी फूलों के हार, मंगल कलश तथा बाजा आदि से विभूषित थे। राजन् ! उस समय नंदजी का दर्शन करके उद्धव आदि समस्त यादवों ने उनको नमस्कार किया। सबके नेत्रों में हर्ष के आंसू छलक आए थे । उसी समय नंदराय का दाहिना अंग फड़क उठा। नरेश्वर ! वह उत्तम शकुन देखकर वे मन ही मन कहने लगे– क्या मैं आज अपने नेत्रों से प्रियवादी श्रीकृष्ण को देखूंगा। क्योंकि प्रिय की सूचना देने वाला मेरा दाहिना नेत्र फड़क रहा है। यदि श्रीकृष्ण मेरे नेत्रों के समक्ष आ जाएँ तो आज मैं ब्राह्मणों को वस्त्राभूषणों से अलंकृत एक लाख गौएं दान दूंगा । नपेश्वर ! ऐसा संकल्प करके जब नंदजी चुप हुए, तभी ब्रजवासियों के मुख से उन्होंने अपने पुत्र के शुभागमन का समाचार सुना। श्रीकृष्ण का आगमन सुनकर विरह में डूबे हुए नंदराय उन श्रीहरि को देखने के लिए रोते हुए सबसे आगे चलने लगे। वे गद्गदवाणी से बार बार कह रहे थे– हे कृष्ण ! हे कृष्ण ! हे कृष्णचंद्र ! तुम कहाँ चले गए थे ? क्या मुझ दुखिया को नहीं देखते हो । पिता को देखकर पितृवत्सल श्रीकृष्ण रथ से कूदकर तत्काल उनके चरणों में गिर पड़े। श्रीनंदराय ने सुदीर्घकाल के बाद आए हुए अपने पुत्र को उठाया और उन्हें छाती से लगाकर वे नेत्रों के जल से नहलाने लगे। श्रीकृष्णचंद्र भी करुणा से आकुल हो नेत्रों से अश्रुधारा बहाने लगे। तत्पश्चात् प्रेम में डूबे हुए श्री दामा आदि मित्रों को देखकर प्रेम परिलुप्त श्रीकृष्ण ने उन सबको बारी–बारी से अपने हृदय से लगाया। अहो ! इस भूतल पर कौन ऐसा मनुष्य है, जो भक्तों के माहात्मय का वर्णन कर सके ? एक ओर से नंद आदि गोप रो रहे थे और दूसरी ओर से श्रीकृष्ण यादव आदि। सब लोग विरह से व्याकुल होने के कारण परस्पर कुछ बोल नहीं पाते थे। श्रीकृष्ण के मुख पर आंसुओं की अविरल धारा बह रही थी। उन्होंने गद्गदवाणी से प्रेमानंद में डूबे हुए समस्त गोपों को आश्वासन दिया। उन सबने साक्षात परिपूर्णतम जगदीश्वर श्रीकृष्ण को वैसा ही देखा, जैसा वे मथुरा जाते समय दिखाई दिए थे । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |