गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 38
देवता बोले– ये दोनों त्रिभुवन की सृष्टि और संहार करने वाले हैं। इसलिए रणमण्डल में दिन दोनों का युद्ध निष्फल है। कौन इस युद्ध को जीतेगा और किसकी पराजय होगी ? (यह कैसे कहा जा सकता है) । श्रीगर्गजी कहते हैं– राजन् ! तदनंतर तीन दिनों तक उन दोनों में बड़ा भारी युद्ध हुआ। फिर रुद्रदेव ने धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाकर रोषपूर्वक ब्रह्मास्त्र का संधान किया, जो वहीं तीनों लोकों का प्रलय करने में समर्थ था। परंतु अनिरुद्ध ने ब्रह्मास्त्र से ब्रह्मास्त्र का, वज्रास्त्र से पर्वतास्त्र का और पर्जन्यायस्त्र से आग्नेयास्त्र का निवारण कर दिया। तब पिनाशक धारी शिव अत्यंत क्रोध के कारण प्रज्वलित से हो उठे। उन्होंने तीन शिखाओं वाले त्रिशूल से प्रद्युम्न नंदन अनिरुद्ध पर आघात किया। वह त्रिशूल अनिरूद्ध को विदीर्ण करके हाथी को भी चीरता हुआ निकल गया और उन दोनों के बीच में ऊपर को पुंख भाग और नीचे को मुख किए स्थित हो गया। हाथी का तत्काल मृत्यु हो गई और युद्धस्थल में अनिरुद्ध भी मूर्च्छित हो गए। वे दोनों रणभूमि में वक्ष:स्थल विदीर्ण हो जाने के कारण एक–दूसरे से लगे हुए ही गिर पड़े। उस समय हाहाकार मच गया। सब यादव रोने लगे। जैसे यमराज के आगे पापी डर जाते हैं, उसी प्रकार रुद्रदेव के आगे सब यादव भयभीत हो गए। अनिरुद्ध मृतक के समान मूर्च्छित होकर गिर पड़े हैं, यह समाचार सुन कर साम्ब शंकित हो स्कन्ध छोड़कर वहाँ गए। यादववीर को मूर्च्छित हुआ देख साम्ब के नेत्रों से अश्रुधारा बह चली और वे धनुष हाथ में लेकर क्रोधपूर्वक शिव से बोले– रुद्र ! संग्राम में अनिरुद्ध तथा वीर सुनंदन को मारकर तुम दानवों का पालन कैसे करोगे ? मैंने पहले वेद में और भागवत शास्त्र में ब्राह्मणों के मुँह से सुन रखा था कि शिव वैष्णव हैं और वे सदा श्रीकृष्ण संज्ञक परब्रह्म का भजन सेवन करते हैं। आज प्रद्युम्न कुमार के धराशायी होने पर वह सब कुछ व्यर्थ हो गया। सुनंदन श्रीकृष्ण के पुत्र हैं, किंतु उन्हें भी तुमने युद्ध में मार डाला। महेश्वर ! शिव ! तुम व्यर्थ युद्ध करते हो। तुम्हें धिक्कार है। तुम श्रीकृष्ण से विमुक हो, अत: मैं रणभूमि में क्षरप्रों तथा सायकों द्वारा तुम्हें शीघ्र ही मार गिराऊंगा। तुम खड़े रहो, खड़े रहो । साम्ब की यह बात सुनकर भगवान शंकर प्रसन्न हो गए और इस प्रकार बोले । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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