गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 35
ऐसा कहकर बल्वल ने अपने बाण द्वारा मायासुर की माया प्रकट की। उस समय घोर अंधकार छा गया। कोई भी दिखाई नहीं देता था। बहुत से लोगों को यह भी पता नहीं चलता था कि कौन अपना है और कौन पराया। योद्धाओं के ऊपर ऊँचे पर्वतों के समान शिलाएँ गिर रही थीं। बरसती हुई जलधाराओं के कारण चारों ओर से सब लोग व्याकुल हो गए थे। बिजलियाँ चमकतीं और बादल जोर जोर से गर्जना करते थे। वे बादल गर्म-गर्म रक्त की और मलमिश्रित जल की वर्षा करते थे। आकाश से रुण्ड और मुण्ड गिर रहे थे। उस समय समस्त श्रेष्ठ यादव संग्राम में परस्पर व्याकुल और भयातुर हो वहाँ से पलायन करने लगे। तब अनिरुद्ध ने उस संग्राम भूमि में भगवान श्रीकृष्ण के युगल चरणारविंदों का चिंतन करके लीलापूर्वक मोहनास्त्र द्वारा उस माया को नष्ट कर दिया। उस समय सारी दिशाएँ प्रकाशित हो गईं। सूर्य मंडल का घेरा समाप्त हो गया। बादल जैसे आए थे वैसे ही लीन हो गए। और चपलाएँ शांत हो गई । राजन् ! माया दूर हो जाने पर वह प्रचंड पराक्रमी मायावी दैत्य दानवों के साथ सामने दिखाई दिया। उसने नाना प्रकार के अस्त्र शस्त्र ले रखे थे। बल्वल ने कुपित होकर यादवों के वध के लिए ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। परंतु अनिरुद्ध ने पुन: ब्रह्मास्त्र चलाकर उस ब्रह्मास्त्र को शांत कर दिया। इससे बल्वल का क्रोध उदित हो उठा। उसने युद्ध में विजय पाने के लिए अत्यंत मोह में डालने वाली 'गान्धर्वी माया' प्रकट की। नृपश्रेष्ठ ! अब वहाँ गंदर्भ नगर दिखाई देने लगा। संग्राम का कोई चिह्न नहीं दिखता था। करोड़ों सुवर्णमय महल दृष्टिगोचर होने लगे। उस नगर में बहुत सी गंदर्भ सुंदरियाँ वीणा ताल और मृदंग की ध्वनि के साथ नृत्य करती हुईं मधुर कंठ से गीत गाने लगीं। कुंदुक की क्रीड़ाओं, हावभाव और कटाक्षों तथा कटि और वेणी के प्रदर्शनों द्वारा वे कमल नयनी सुंदरियाँ सब लोगों का मनोरंजन करने लगीं। उनका सौंदर्य देख कर यादव वीर कामवेदना से विह्वल हो गए और वे अस्त्र-शस्त्रों को भूमि पर डाल कर आपस में कहने लगे। हम सब लोग कहाँ आ गए। दैवयोग से स्वर्गलोक में तो नहीं पहुँच गए, जहाँ मन को मोह देने वाली सुंदरी कलकंठी सुरांगनाएँ नृत्य करती हैं, इनके लावण्य जलधि में मृग होकर हम कामवेदना से व्याकुल हो गए हैं। हमारी विजय कैसे होगी। यहाँ रणक्षेत्र तो दिखाई ही नहीं देता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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