गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 32
मय का यह वचन सुनकर बल्वल परम ज्ञान को प्राप्त हो गया। राजेंद्र ! उसने क्षणभर विचार करते हंसते हुए कहा । बल्वल बोला– मैं जानता हूँ कि भगवान श्रीकृष्ण संपूर्ण विश्व के पालक हैं, बलरामजी साक्षात भगवान शेषनाग हैं, प्रद्युम्न कामदेव के अवतार हैं और यहाँ आए हुए अनिरुद्ध साक्षात ब्रह्माजी हैं। इन्हीं के हाथ से हमारा वध होने वाला है, यह सोचकर ही मैंने इस अश्व का अपहरण किया है। उनके बाणों से मारा जायक यदि में मृत्यु को प्राप्त हो जाऊँगा, तो शीघ्र ही सुखपूर्वक भगवान विष्णु के परमपद को चला जाऊँगा। पहले भी बहुत से दानव तथा राक्षस वैर भाव से भगवान का भजन करके वैकुण्ठधाम में जा चुके हैं। अत: मैं भी उसी वैरभाव का आश्रय ले रहा हूँ । ऐसा कह कवच धारण करके दानव शिरोमणि बल्वल ने तुरंत ही अपने सेनापति को बुलाया और इस प्रकार कहा– सेनापते ! तुम प्रयत्नपूर्वक ढिंढोरा पिटवाकर इस पुरी में मेरा यह आदेश प्रसारित कर दो कि वीरों में से जो लोग भी बच गए हैं, वे अनिरुद्ध के साथ युद्ध के लिए चलें। जो मेरी आज्ञा नहीं मानेंगे, वे बेटे अथवा भाई ही क्यों न हों, युद्ध किए बिना वध के योग्य समझे जाएँगे । बल्वल का ऐसा आदेश सुनकर सेनापति ने गली–गली और घर–घर में डंका बजाकर बड़े वेग से उसकी आज्ञा घोषित कर दी। ढिंढोरे के साथ की गई इस घोषणा को सुन कर समस्त दैत्य भय से आतुर हो गए और शीघ्र ही सब प्रकार के अस्त्र–शस्त्र लेकर वे बल्वल के सभा भवन में आ गए। तब सबसे पहले सैन्यपाल लाख दैत्यों से घिरकर, कवच और धनुष से सुसज्जित हो, रथ के द्वारा नगर से बाहर निकला। दुर्नेत्र, दुर्मुख, दु:स्वभाव और दुर्मद– ये मंत्रियों के चार पुत्र भी युद्ध के लिए निकले । बल्वल के साथ महामत्त गजराज, चपल अंग वाले तुरंग तथा देवविमानों के समान आकार वाले रथ थे। विद्याधरों के समान पैदल योद्धा भी साथ चल रहे थे। इस चतुरंगिणी सेना के साथ तत्काल मय के दिए हुए एवं इच्छानुसार चलने वाले यान पर बैठकर बल्वल स्वयं युद्ध के लिए प्रस्थित हुआ। उसके साथ चार लाख बड़े–बड़े असुर थे। सैन्यपाल का पुत्र भूखा था और घर पर भोजन कर रहा था, इसलिए युद्ध के निमित्त शीघ्र नहीं निकल सका। सोना में उसे नहीं आया देख बल्वल के सैनिकों ने डरते–डरते दैत्यराज से उसके अनुपस्थित होने की बात बताई। तब बल्वल के आदेश से कई वीर गए और उसे रोषपूर्वक रस्सियों से बाँधकर राजा के सामने ले आए। इस सफलता से उनके मुख और नेत्र खिल उठे थे । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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