गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 30
भाई को मारा गया देख नद शोक से भर गया। हाथी पर बैठे हुए उस दैत्य ने गजराज पर विराजमान गद को लक्ष्य करके अनेक बाण छोड़े। उन बाणों को अपने ऊपर आया देख महान धनुर्धर गद ने अनिरुद्ध के देखते–देखते एक ही बाण से सबको काट दिया। भाई के शोक में डूबे हुए नद ने अत्यंत कुपित होकर संग्राम में अपने बाणों के प्रहार से रोहिणी नंदन गद को गजहीन कर दिया– उसके हाथी को मार गिराया। सैकड़ों बाणों के आघात से उस हाथी के अंग-अंग विदीर्ण हो गए थे, इसलिए वह पंचतत्त्व को प्राप्त हो गया और गद उसके साथ ही भूमि पर गिर पड़े। वह अद्भुत सी घटना घटित हुई। तब गद क्रोध से जल उठे और रणभूमि में गदा लेकर शत्रु को मारने के लिए उसी तरह आगे बढ़े, जैसे वन में एक सिंह दूसरे सिंह पर आक्रमण करता है। राजन् ! आते ही नद के हाथी ने गद को अपनी सूंड में लपेट कर आकाश में सौ योजन ऊपर फेंक दिया। आकाश से गिरने पर गद ने उठकर हाथी के शुण्ड दण्ड को पकड़ लिया और उसे घुमाकर पृथ्वी पर दे मारा। उस हाथी की युद्धस्थल पर तत्काल मृत्यु हो गई। यह देखकर महान असुर नद को आश्चर्य हुआ। उसने गद की प्रशंसा करके एक भारी गदा हाथ में ली और शीघ्र ही गदाधारी वीर गद को युद्ध के लिए ललकारा। प्रजानाथ ! इसी प्रकार गद ने भी दैत्य नद का अपने साथ संग्राम के लिए आह्वान किया। नद ने गद को उत्तर दिया – यादव तू मनुष्य है। अत: तेरे साथ युद्ध करने में मुझे लज्जा का अनुभव हो रहा है। भला तू कैसे मेरे साथ युद्ध करेगा ? पहले तू मुझ पर प्रहार कर। पीछे मेरे प्रहार से तू जीवित नहीं रह सकेगा । यह सुनकर गद ने उससे उसी प्रकार बात की, जैसे देवराज इंद्र ने वृत्रासुर से वार्तालाप किया था । गद बोले– दैत्य ! जो मुंह से बड़ी–बड़ी बातें बनाते हैं, वे कुछ नहीं कर पाते। जो शूरवीर हैं, वे रणभूमि में डींग नहीं हांकते हैं, अपना पराक्रम ही दिखाते हैं । राजेंद्र ! यह सुनकर गद कुपित हो उठा। उसने गर्जना करते हुए अपनी भारी और विशाल गदा उसकी छाती पर दे मारी। गदा की चोट खा कर भई वीरवर गद युद्धभूमि में उसी प्रकार विचलित नहीं हुए, जैसे मदोन्मत्त हाथी किसी बालक द्वारा फूल से मारे जाने पर उसकी कोई परवाह नहीं करता। दानव लज्जित हो गया था। उसकी ओर देखकर वीर शिरोमणि गद ने कहा- परंतप ! यदि तुम वीर हो तो मेरा भी एक प्रहार सहन कर लो । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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