गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 26
ऐसा कहकर अनिरुद्ध ने विजय यात्रा के लिए सहसा समस्त यादवों को आज्ञा दी। नृपेश्वर ! नारदजी के हृदय में युद्ध देखने का कौतूहल था। वे अनिरुद्ध से विदा ले आकाश मार्ग से उस स्थान पर गए। समस्त यादव तत्काल तीर्थराज में विधिवत स्नान–दान करके रोषपूर्वक युद्ध यात्रा के लिए सुसज्जित हो गए। राजन् ! वे हाथियों, घोड़ों तथा रथों के द्वारा उस उपद्वीप में गए। प्रतिदिन दो लाख सिपाही उनके जाने के लिए मार्ग तैयार करते थे। वे भिन्दिपालों की सहायता से सर्वत्र सेना के लिए पहले ही मार्ग तैयार कर देते ते, जिस पर रथ, हाथी और घोड़े सुख से यात्रा करते थे। राजेंद्र ! उस निष्कण्टक मार्ग में पैदल सिपाही भी तीव्रगति से चलते थे। यादव सेना के भार से पीड़ित हो शेषनाग मन ही मन कहते थे– न जाने भूतल पर क्या हो गया है ? नरेश्वर ! अनिरुद्ध सेना के आगे होकर अलक्षित भाव से चलते थे। वे अश्व की रक्षा के बहाने पापियों का विनाश सा करते थे। राजन् ! प्रद्युम्न कुमार अनिरुद्ध अश्व की रक्षा के लिए जहाँ-जहाँ गए, वहाँ-वहाँ वे श्रीकृष्ण के समग्र यश का गान सुनते थे। उनको वे रत्न, वस्त्र और आभूषण बाँटते थे। उनकी सेनाओं में जो कुछ भी उत्तम धन था, वह सब श्रीकृष्ण कथा से आकृष्टचित्त हो वे प्रसन्नतापूर्वक दे डालते थे। राजन् ! इस प्रकार श्रीहरि का यशोगान सुनते और काशी तथा गया आदि तीर्थों को देखते हुए वहाँ अनेक प्रकार के दान दे, वे पूर्वदिशा की ओर चले गए। यादवों ऐसी भयंकर सेना देखकर गिरि–व्रजपुर के स्वामी जरासंध पुत्र सहदेव शंकित हो गए। वे नाना प्रकार के रत्नों की भेंट ले, भय से विह्वल हो, दोनों हाथ जोड़कर अनिरुद्ध के चरणों में गिर पड़े। शरणागत वत्सल अनिरुद्ध ने सहदेव को प्रसन्नतापूर्वक रत्नमयी माला भेंट की और उन्हें उनके राज्य पर स्थापित करके शीघ्र ही श्रेष्ठ वृष्णिवंशी वीरों के साथ वे कपिलाश्रम को गए। उन श्रेष्ठ यादव वीर ने वहाँ गंगासागर संगम में स्नान किया और सिद्ध मुनीन्द्र कपिल का दर्शन करके सेना सहित उनके चरणों में मस्तक झुकाया। राजन ! उस स्थान से दक्षिण दिशा में समुद्र के तट पर महलों के समान ऊँचे–ऊँचे शिविर लग गए। राजेंद्र ! उन शिविरों में अनुयायियों सहित अनिरुद्ध आदि शूरवीर और विजयाभिलाषी समस्त यादवों ने निवास किया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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