गर्ग संहिता
श्रीविज्ञान खण्ड : अध्याय 9
दीप- प्रभो ! आप जगत के स्वामी एवं विश्व को प्रकाशित करने वाले हैं। अन्धकारक का नशा करने वाला ज्ञानस्वरूप यह प्रधान दीप आपके लिये तैयार है, जो बत्तियों से सजाया हुआ अत्यन्त मनोहर जान पड़ता है। यह गाय के घी से पूर्ण है। साथ ही इसमें कपूर भी छोड़ा गया है। भगवन इस प्रकार चमचमाती हुई लौ वाले इस दीप को स्वीकार करें। नैवेद्य- नन्दनन्दन ! षडरस से युक्त एवं वेदोक्त विधि से तैयार किया हुआ नैवेद्य आपके लिये उपस्थित है। यह रसों से भरपूर है और यशोदाजी ने इसे बनाया है। स्वादिष्ट होने के साथ गोघृत के प्रयोग से यह अमृतमय बन गया है। अत: इसे आप ग्रहण कीजिये। जल- भक्तवत्सल ! गंगोत्तरी की धारा से यत्नपूर्वक प्राप्त किया हुआ यह अमृतमय जल है, जो हिमालय के टुकड़े की भाँति शीतल है। यह सुवर्ण के पात्र में रखा गया है और इससे अति निर्मल आभा निकल रही है। राधावर ! आप इसे स्वीकार कीजिये। आचमन- राधापते ! आप भगवती विरजा के स्वामी हैं। सर्वेश्वर ! आप लक्ष्मीजी के प्राणनाथ एवं भूमण्ड के अधीश्वर हैं। दयानिधे ! कंकोल, जायफल और पुष्पों से सुवासित यह उत्तम आचमनीय प्रस्तुत है। प्रभो ! इसे ग्रहण कीजिये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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