गर्ग संहिता
बलभद्र खण्ड: अध्याय 3
मैं कहकर इन्द्र चले गये। तब राजा ने वायु का आवाहन किया और उनसे पूछा- ‘सच-सच बताइये, आपसे भी बढ़कर कोई बलवान है वायु बोले- ‘पर्वत मुझसे बलवान हैं; क्योंकि मेरा वेग उन्हें उखाड़ नहीं सकता। यह कहकर वायु चले गये। तब राजा ने पर्वतों को बुलाया और कहा- ‘सच बताइये, भूमण्डल में आपसे अधिक बलवान कौन है पर्वतों ने उत्तर दिया- ‘हम लोगों को अपने ऊपर धारण करने के कारण भूमण्डल हमसे अधिक बलवान हैं। पर्वत इतना कहकर चले गये। तब राजा ने भूमण्डल को बुलाकर पूछा- ‘सत्य-सत्य बताओ, तुमसे भी अधिक कोई शक्ति सम्पन्न है या नहीं। यह सुनकर भूमण्डल ने कहा- ‘मुझ से अधिक बलवान भगवान संकर्षण हैं। वे नित्य अनन्त, अनन्त गुणों के समुद्र हैं। वे आदिदेव हैं, वासु देवरूप हैं, उनके हजार मुख हैं, उनका विग्रह गजराज के समान विशाल है, वे कैलास के सदृश उज्ज्वल प्रभा वाले हैं, करोड़ों सूर्यों के समान उनकी ज्योति है। वे सुन्दरता में करोड़ों कामदेवों के गर्व को चूर्ण करने वाली हैं। कमलपत्र के समान उनके सुन्दर नेत्र हैं। वे दिव्य निर्मल कमल कर्णिकाओं की माला से सुशोभित हैं, जिनके परिमल का पान करने के लिये भ्रमरों के यूथ गुंजार करते रहते हैं। सिद्ध, चारण, गंधर्व और श्रेष्ठ विद्याधरों के द्वारा जिनका यशोगान होता रहता है; देवता, दानव, सर्प और मुनिगण जिनका सदा आराधना करते हैं और जो सबसे ऊपर विराजमान है; जिनके एक मस्तक पर पर्वत, नदी, समुद्र, वन और करोड़ों-करोड़ों प्राणियों से अलंकृत अखण्ड भूमण्डल दिखायी देता है और तीनों लोकों में जिनका नाम कीर्तन करने से त्रिलोकी का वध करने वाला भी कैवल्य-मोक्ष को प्राप्त करता है ऐसे प्रभाव सम्पन्न, समस्त कारणों के कारण, सबके ईश्वर और सबसे अधिक शक्तिशाली भगवान संकर्षण हैं। वे रसातल के मूलभाग में विराजमान हैं। उनसे बढ़कर दूसरा कोई नहीं है। महानन्त ने कहा- इस प्रकार भूमण्डल के चले जाने पर माधुर्य और प्रभाव को जानकर ज्योतिष्मती ने पिता की आज्ञा ली और मुझे प्राप्त करने के लिये विन्ध्याचल पर्वत पर तप करने चली गयी। उसने लाख वर्षों तक वहाँ तपस्या की। वह गर्मी के दिनों में पच्चाग्नि के बीच में बैठकर तप करती, वर्षा में निरन्तर जल धारा को सहन करती और सर्दी के दिनों में कण्ठ पर्यन्त ठंडे जल में डूबी रहती। वह तपस्या के काल में नीचे जमीन पर ही सोया करती। इस प्रकार श्रीगर्ग संहिता में श्री बलभद्र खण्ड के अन्तर्गत श्री प्राडविपाक मुनि और दुर्योधन संवाद में ‘ज्योतिष्मती का उपाख्यान’ नामक तीसरा अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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