गर्ग संहिता
बलभद्र खण्ड: अध्याय 2
वीणा, मृदंग, ताल और दुन्दुभि के शब्द हो रहे थे। वे फणिधर गजराज के समान तीव्र गति से वहाँ पधारे। उनके एक फन पर यह सारा भूमण्डल सरसों के दाने की तरह प्रतीत हो रहा था। ऐसे शेषजी वहाँ आकर भगवान महाअनन्त के श्रीविग्रह में प्रविष्ट हो गये। सभा के सम्पूर्ण पार्षदों ने इस विचित्र लीला को देखा और वे उन्हें परिपूर्णतम भगवान समझकर सर्वथा अवनत और आश्चर्यचकित हो गये। तदनन्तर अनन्त मुख महान अनन्त भगवान संकर्षण ने सिद्ध पार्षदों से कहा- ‘भूमि का भार हरण करने के लिये मैं भूमण्डल पर चलूँगा। इसलिये तुम लोग जाकर यादव कुल में जन्म ग्रहण करो। तदनन्तर वे सुमति सारथि से बोले- तुम बड़े बलवान और शूरवीर हो। तुम यहाँ ही रहो। किसी प्रकार का शोक न करो। जिस समय युद्धाभिलाषी होकर मैं तुम्हें याद करूँगा, उसी समय तालचिहित दिव्यरथ को लेकर तुम मेरे समीप आ जाना। हे हल और मुसल। मैं जब-जब तुम्हारा स्मरण करूँ, तब-तब तुम मेरे सामने प्रकट हो जाना। कवच ! तुम भी वैसे ही प्रकट होना। हे पाणिनि आदि, व्यास आदि तथा कुमुद आदि मुनियों ! ग्यारह रुद्रों ! हे कोटि-कोटि रुद्रो ! गिरिजापति श्री शंकर जी ! गन्धर्वों ! वासुकि आदि नागराजों ! निकातकवचादि दैत्यों ! हे वरुण और कामधेनु ! मैं भूमण्डल पर भारतवर्ष में यदुकुल में अवतार लूँगा। तुम सब वहाँ सदा-सर्वदा मेरा दर्शन करना। प्राडविपाक मुनि कहने लगे- इस प्रकार आज्ञा पाकर वे सभी अपने स्थानों को चले गये। उनके चले जाने के अनन्तर भगवान अनन्त ने नागकन्याओं के यूथ से कहा- ‘मैं तुम्हारा अभिप्राय जानता हूं, तुम सभी तपस्या के द्वारा गोपों के घर जन्म लेकर मेरा दर्शन करना। किसी समय कालिन्दी के तट पर मनोहर रासमण्डल में तुम्हारे साथ रास करके मैं तुम्हारा अभिप्राय जानता हूं, तुम सभी तपस्या के द्वारा गोपों के घर जन्म लेकर मेरा दर्शन करना। किसी समय कालिन्दी के तट पर मनोहर रासमण्डल में तुम्हारे साथ रस करके मैं तुम्हारा मनोरथ पूर्ण करूँगा। तदनन्तर निवात कवचों के राजाकलि ने हाथ जोड़कर प्रभु के चरण कमलों में पुष्पांजलि अर्पण की और भगवान के चरणों में मस्तक टेककर कहा भगवन् ! मुझे आज्ञा दीजिये, मेरे लिये क्या काम होगा आप जहाँ पधारेंगे, वहाँ ही मैं भी चलूँगा। पिताजी ! आपके वियोग में मुझे महान् दु:ख होगा; आप भक्तवत्सल हैं, अत एव मुझे साथ ले चलिये। इस प्रकार प्रार्थना सुनकर भगवन अनन्त ने प्रसन्न हो अपने भक्त कलिराज से कहा- ‘तुम मेरे साथ सुखपूर्वक भारतवर्ष में चलो। तुम मेरे साथ सुखपूर्वक भारतवर्ष में चलो। तुम वहाँ कौरवकुल में धृतराष्ट्र के पुत्र दुर्योधन के नाम से विख्यात चक्रवर्ती राजा बनो। मैं तुम्हारी सहायता करूँगा, तुम्हें गदायुद्ध सिखाऊंगा। इस प्रकार कहने पर उन्हें नमस्कार करके राजा कलिरूप में स्थान पर चला गया। उसी कलि तुमने दुर्योधन के रूप में जन्म लिया है। भगवान विष्णु की माया से तुम को अपने स्वरूप की स्मृति नहीं है। इस प्रकार श्रीगर्ग संहिता में श्री बलभद्र खण्ड के अन्तर्गत श्री प्राडविपाक मुनि और दुर्योधन के संवाद में ‘बलभद्र जी के अवतार की तैयारी’ नामक दूसरा अध्याय पूरा हुआ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |