गर्ग संहिता
विश्वजित खण्ड : अध्याय 18
उस बाण ने भी उस समय पात्र का भेदन करके उसे अधोमुख कर दिया और फिर तत्काल ही उसका मुख ऊपर की ओर करके वह उसमें आधा निकला हुआ स्थित हो गया तब भी बाण के वेग से एक बूँद भी जल नहीं गिरा और पात्र भी नहीं फूट सका। यह अद्भुत सी बात हुई। इस प्रकार श्रीकृष्ण के जो अठारह महारथी पुत्र थे, उन सबने पात्र का भेदन किया, किंतु जल का स्त्राव नहीं हुआ । यह हस्तलाघव देखकर बिन्दु देश के राजा दीर्घबाहु बडे़ विस्मित हुए। उन्होंने उनके हाथ में अपनी अठारह सुलोचना कन्याएं प्रदान कीं। उनके विवाहकाल मे शंक, भेरी और आनक आदि बाज बजे, गन्धर्वों ने गीत गाये तथा अप्सराओं ने नृत्य किया। देवताओं ने उन सबके ऊपर जयध्वनि के साथ फूल बरसाये और स्वर्गवासियों ने उन सबकी भूरि-भूरि प्रशंसा की। राजा दीर्घबाहु ने साठ हजार, हाथी, एक अरब घोड़े, दस लाख रथ, एक लाख दासियों तथा चार लाख शिबिकाएं दहेज में दीं। यदुकुल तिलक प्रद्युम्न ने वह सारा दहेज द्वारकापुरी को भेज दिया । तत्पश्चात् दीर्घबाहु की अनुमति ले प्रद्युम्न निषध देश को गये। मैथिल ! निषध के राजा का नाम वीरसेन था। उन्होंने भी महात्मा प्रद्युम्न को भेंट दी। इसी प्रकार भद्रदेश के अधपति बृहत्सेन ने, जो श्रीकृष्ण को इष्ट देव माननेवाले तथा श्रीहरि के प्रिय भक्त थे, सैनिकों सहित माथुर, शूरसेन तथा मधु नामक जनपदों में गये। वहाँ स्वागत पूर्वक पूजित हो, वे पुन: मथुरा में आये। तदनन्तर वनों सहित मथुरा की परिक्रमा करके वे व्रज में गये। राजन्! वहाँ उन्होंने गोप-गोपी, यशोदा, व्रजेश्वर नन्दराज, वृषभानु तथा उपनन्दों को नमस्कार करके बड़ी शोभा पायी। नन्दराज को बारंबार भेंट-उपहार अर्पित करके, उन सबके द्वारा सम्मानित हो वे कई दिनों तक नन्द-गोकुल में टिके रहे । इस प्रकार श्रीगर्ग संहिता में विश्वजित खण्ड के अन्तर्गत नारद बहुलाश्व संवाद में ‘मथुरा तथा शूरसेन जनपदों पर विजय’ नामक अठारहवां अध्याय पूरा हुआ । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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