गर्ग संहिता
विश्वजित खण्ड : अध्याय 10
मस्तक पर किरीट, कानों में कुण्डल तथा वक्ष पर सोने के कवच से विभूषित वह करुष-राजकुमार करधनी की लड़ें पहिने हुए था। उसके चंचल चरणों में नूपूर बज रहे थे। वह अपने वेग से पृथ्वी को कँपाता, पर्वतों तथा वृक्षों को गिराता और अपनी गदा के प्रहार से शत्रुओं को काल के गाल में भेजता हुआ यमराज के समान दुर्जय प्रतीत होता थ। समरांगण में दन्तवक्र को उपस्थित देख समस्त यादव भय से थर्रा उठे। उसके आते ही महान कोलाहल मच गया। प्रद्युम्न ने उसके ऊपर बारंबार धनुष की टंकार करती हुई अठारह अक्षौहिणी विशाल सेना भेजी । राजन ! जैसे हाथी किसी पर्वत पर चारों ओर से टक्कर मारते हों, उसी प्रकार समस्त यादवों ने बाणों, फरसों, शघ्रियों तथा भुशुण्डियों से दन्तवक्र पर प्रहार करना आरम्भ किया। राजेन्द्र ! दन्तवक्र ने अपनी गदा से रणभूमि में बहुत से उत्कट गजराजों के कुम्भस्थल विदर्ण करके उन्हें मार गिराया। किन्हीं हाथियों को, जो किकिंणी-जाल से निनादित, साँकलों से सुशोभित, हौदों से अलंकृत और चंचल घंटों क रणत्कार से युक्त थे, उसने पॉंव पकड़कर उठा लिया और जैसे हवा रुई को दूर उड़ा ले जाती है, उसी प्रकार आकाश में सौ योजन दूर फेंक दिया। वह दैत्यराज किन्हीं-किन्हीं की कांखों में उभय पार्श्वों पैरों से आक्रमण करके वह दैत्य कालाग्निरुद्र की भाँति शोभा पाता था। वह वीर सारथि, घोड़े, ध्वजा और महारथियों सहित रथों को आकाश में उसी तरह उठा देता था, जैसे आंधी कमलों को उड़ा ले जाती है। उसने घोड़ों और पैदल सैनिकों को भी बलपूर्वक उठा-उठाकर आकाश में फेंक दिया। बहुत-से महाबली राजकुमार ऊपर या नीचे या मुँह किये शस्त्रों तथा रत्नमय केयुरों सहित आकाश से गिरते हुए तारों के समान प्रतीत होत थे और मुँह से रक्त वमन कर रहे थे। मैथिल ! उस दैत्य पुंगव ने अपनी गदा से यादव-सेना को उसी प्रकार मथ डाला, जैसे भगवान श्रीवराह ने प्रलयकाल के समुद्र को अपनी दंष्ट्रा से विक्षुब्ध कर दिया था । इस प्रकार श्रीगर्ग संहिता में विश्वजित खण्ड के अन्तर्गत नारद बहुलाश्व संवाद में ‘कोंकण, कुटक, त्रिगर्त, केरल, तैलंग, महाराष्ट्र और कर्नाटक पर विजय पाकर यादव सेना का करूष देश में गमन’ नामक दसवां अध्याय पूरा हुआ । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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