गर्ग संहिता
द्वारका खण्ड : अध्याय 22
सत्या बोली- आप दु:ख दारिद्रयता नाश करने वाले श्रीकृष्ण के दर्शन करें, मांगना नहीं होगा। वे अपने-आप ही प्रचुर सम्पति दे देंगे। सुदामा ने पत्नी के द्वारा बहुत तरह से समझाये-बुझाये जाने पर यह विचार किया- ‘इस निमित्त से मित्र के दर्शन का परम लाभ तो ही जायगा, परंतु मैं उनको उपहार क्या दूँगा ? पति के मुख से यह बात सुनकर सती ब्राह्मणी दूसरे घर से चार मुट्टी तन्दुल (चिउड़ा) मांग लायी और एक पुराने चिथड़े में बांधकर उन्हें पति को दे दिया। तदनन्तर सुदामाजी मैले कपडे़ से अपने मैले-कुचैले दुर्बल शरीर को ढककर उन चिउड़ों को लेकर मन-ही-मन ब्राह्मण देवता का स्मरण करते हुए धीरे-धीरे श्रीकृष्ण के नगर की ओर चल दिये। ब्राह्मण ने नौका से समुद्र पार करके स्वर्णमय विचित्र द्वारकापुरी के दर्शन किये। उस पुरी में पताकाएं फहरा रही थी। कतार की कतार सभी भवन और भाँति –भाँति के दुर्ग सुशोभित थे। उसमें चार सड़कें थीं। ब्राह्मण ने श्रीकृष्ण की पुरी को देखकर लोगों से पूछा- ‘श्रीकृष्ण का भवन कौन सा है, यह बताइये। इस बात को सुनकर माधव की द्वारकापुरी के रक्षकों ने कहा- ‘सभी भवनों में श्रीकृष्ण हैं। यह सुनकर ब्राह्मण किसी एक भवन में घुस गये और अंदर जाकर देखा कि पलंग पर श्रीकृष्ण विराजमान हैं। उन्हें देखकर सुदामा को ब्रह्मानन्द की प्राप्ति हुई। माधव ने सखा सुदामा को आया देखकर सहसा उठकर उन्हें अपने बाहुपाश में बांधकर हृदय से लगा लिया और वे आनन्द के आंसू बहाने लगे। तदनन्दतर स्वर्ण-पात्रों में भरे जल के द्वारा उनके दोनों चरणों का प्रक्षालन किया और उस जल को अपने मस्तक पर धारण करके ब्राह्मण को अपने पलंग पर बैठा लिया। फिर गन्ध चन्दन, अगुरु, कुमकुम, धूप, दीप, मधुपर्क और पकान्न के द्वारा उनकी पूजा की। पश्चात पान का बीड़ा देकर गोदान किया और मलिन वस्त्रधारी दुबले-पतले, पके बालों वाले ब्राह्मण से पधारने का कारण पूछा। मित्रविन्दाजी मुस्कुराती हुई पंखे के द्वारा सुदामाजी की सेवा करने लगीं और ब्राह्मण को इस प्रकार पूजित देखकर परस्पर कहने लगीं- इन भिखारी ने कौन सी तपस्या की है, जिससे स्वयं त्रैलोक्यनाथ बडे़ भाई की तरह इनका सत्कार कर रहे हैं। इसी बीच दोनों मित्र आपस में हाथ पकडे़ हुए पुरानी गुरु के घर की बातें करने लगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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