गर्ग संहिता
द्वारका खण्ड : अध्याय 8
भगवान श्रीकृष्ण रुक्मिणी की ही भाँति मित्रविन्दा को भी स्वयंवर से हर लाये। राजा नग्नजित के एक पुत्री थी, जो लोगों में सत्या के नाम से विख्यात थी। उसके विवाह के लिए राजा ने यह प्रतिज्ञा की थी कि ’सात सांड़ों को जो एक साथ ही नाथ देगा, उसी वीर को मैं अपनी पुत्री दूँगा। ‘भगवान श्रीकृष्ण ने सब लोगों के देखते-देखते उन सातों सांड़ों को नाथकर सत्या के साथ विवाह किया। केकयराजकुमारी भद्रा को भी भगवान श्रीहरि उसकी इच्छा के अनुसार अपने घर ले आये। वहाँ कालिन्दी की ही भाँति भद्रा के साथ उन्होंने विधिपूर्वक विवाह किया। राजन् ! राजा बृहत्सेन के एक पुत्री थी, जिसे लोग लक्ष्मणा कहते थे। वह समस्त शुभी लक्षणों से सम्पन्न थी। उसके यहाँ स्वयंवर में मत्स्यवेध की शर्त रखी गयी थी। भगवान ने उस मत्स्य का भेदन किया और अपने ऊपर आक्रमण करने वाले शत्रुओं को परास्त करके लक्ष्मणा का हाथ पकडा़। सोलह हजार एक सौ राजकुमारियां भौमासुर के कारागार में बंद थीं। भगवान ने भौमासुर का वध करके उसकी कैद से उनको छुडा़या। उन चारुदर्शना युवतियों की इच्छा देखकर वे उन्हें अपने साथ ले आये। एक की मुहूर्त में विभिन्न भवनों में रहती हुई उन युवतियों के साथ अपनी माया से उतने ही रूप धारण करके भगवान ने उन सबका विधिपूर्वक पाणिग्रहण किया। इस प्रकार सोलह हजार एक सौ आठ रानियों में से प्रत्येक ने श्रीकृष्ण के दस-दस पुत्र उत्पन्न किये। वे सभी गुणों में पिता के समान थे। भीष्मककन्या रुक्मिणी के गर्भ से सबसे पहले प्रद्युम्न प्रकट हुए। वे कामदेव के अवतार थे और पिता की भाँति समस्त शुभलक्षणों से विभूषित थे। निर्दयी शम्बरासुर ने दस दिनों के भीतर ही उन्हें सूतिकागार से उठाकर समद्र में फेंक दिया। वहाँ उन्हें एक उदर में मरे नहीं। वह मत्स्य शम्बरासुर के पाकालय में चीरा गया तो उसमें से प्रद्युम्न निकले। वहाँ उनकी पूर्व पत्नी रति ने उनका पालन किया। जब वे बडे़ हुए और युवावस्था प्रारम्भ हुई, तब उन्हें अपने शत्रु की करतूत का पता चला। राजन् ! फिर अपने शत्रु शम्बरासुर का वध करके वे दिव्य भर्या रति के साथ द्वारका में आये। उनका वह कर्म बड़ा ही विचित्र एवं अद्भुत था। राजन् ! महारथी श्रीकृष्ण पुत्र प्रद्यम्न रुक्मी की बेटी को भोजकट नगर के स्वयंवर स्थल से हर लाये और द्वारका में उसके साथ उनका विवाह हुआ। प्रद्युम्न से अनिरुद्ध नामक पुत्र का जन्म हुआ, जिसमें दस हजार हाथियों का बल था। वे ब्रह्माजी के अवतार समझे जाते थे। उनकी कान्ति शरत्काल के प्रफुल्ल नील कमल के समान श्याम थी। इस प्रकार मैंने परिपूर्णतम भगवान के चतुर्व्यूहावतार का तथा उनके विवाह-सम्बन्धी परम मंगलमय विचित्र चरित्र का तुमसे वर्णन किया है, जो समस्त पापों को हर लेने वाला, पुण्यदायक तथा आयु की वृद्धि का उत्तम साधन है। राजन् ! अब तुम पुन: क्या सुनना चाहते हो ?। इस प्रकार श्रीगर्ग संहिता में द्वारका खण्ड के अन्तर्गत नारद बहुलाश्व संवाद में श्रीकृष्ण की समस्त रानियों के विवाह का वर्णन’ नामक आठवां अध्याय पूरा हुआ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |