गर्ग संहिता
द्वारका खण्ड : अध्याय 4
श्रीनारदजी कहते हैं- राजन् ! ब्राह्मण के मुख से रुक्मिणी के उस अभिप्राय को सुनकर सबको मान देने वाले भगवान श्रीकृष्ण ने अपने सारथि दारुक को बुलाकर कहा- ‘मेरा रथ शीघ्र ही जोतकर तैयार करो। ‘पिछली रात में वैकुण्ठ से प्राप्त हुए उस रथ को जो किंगणी-जाल से युक्त और सुवर्ण एवं रत्नों से जटित था, शैब्य, सुग्रीव, मेघपुष्प और बलाहक नामक के श्रेष्ठ अश्वों से जोतकर दारुक ने सुसज्जित किया। घोड़ों चंचल तथा चारु चामरों से विभूषित थे। उनसे युक्त, सहस्त्रों सूर्यों के समान तेजस्वी उस दिव्य विशाल रथ पर लक्ष्मीपति श्रीकृष्ण ने पहले तो अपने हाथ से उस ब्राह्मण देवता को बैठाया और स्वयं सारथि पीठ पर अपने श्रीचरण-कमल रखकर वे रथ पर आरुढ़ हुए। राजन् ! इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण विदर्भ देश को चले। श्रीकृष्ण अकेले ही समस्त राजमण्डल के बीच राजकन्या को हर लाने गये हैं, इस समाचार से बलरामजी को युद्ध की आशंका हुई, अत: वे भाई की सहायता करने के लिये समर्थ बल वाहन से युक्त सम्पूर्ण यादव-सेना को लेकर विपक्षी राजाओं को जीतने के लिये पीछे से शीघ्रतापूर्वक गये। प्रात:काल होते-होते ब्राह्मण और रथ के साथ भगवान श्रीकृष्ण कुण्डिनपुर के उपवन में जा पहँचे। वहाँ एक इमली के वृक्ष के नीचे घोड़े की झूल बिछाकर वे बैठ गये। उस स्थान से कुछ दूरी पर उत्तम कुण्डिनपुर दिखायी देता था। वह नगर बहुत बड़े दुर्ग से घिरा हुआ सात योजन गोलाकर भूमि पर बसा था। वहाँ जल से भरी हुई तीन परिखाऍं थीं, जो दुर्लंघय और दुर्गम थीं। उनकी चौडा़ई सौ धनुष थी। वे परिखाएं चौमासे की नदी के समान जल से भरी हुई थीं, जिनके सुनहरे शिखर पर सोने के कलश उद्धासित होते थे। ध्वज के ऊपर चमकती हुई पताकाएं फहरा रही थीं। कबूतर और मोर आदि पक्षी जहाँ-तहाँ उड़ रहे थे। शिशुपाल को अपनी कन्या देने के लिये उद्यत हो राजा भीष्मक रत्नमण्डप में वैवाहिक सामग्री का संचय कराया। राजन् ! नारियों द्वारा गाये जाने वाले गीत और मंगलाचार से युक्त सुन्दर भवन में रुक्मिणी उसी प्रकार शोभा पा रही थी, जैसे सिद्धियों से भूमि की शोभा होती है। अथर्ववेद के विद्वानों ने रुक्मिणी को भलीभाँति नहलाकर रत्नमय आभूषण तथा वस्त्र धारण करवाये और वेदमन्त्रों द्वारा शान्तिकर्म करके वधू की रक्षा की। महामनस्वी राजा भीष्मक ने ब्राह्मणों को लाख भार सोना, दो लाख भार मोती, सहस्त्र भार वस्त्र और छ: अरब गायें दान में दीं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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