गर्ग संहिता
वृन्दावन खण्ड : अध्याय 20
मृदंग, वीणा, वंशी, मुरचंग, झाँझ और करताल आदि वाद्यों के साथ गोपियाँ ताली बजाती हुई मनोहर गीत गाने लगी। भैरव, मेघमल्लार, दीपक, मालकोश, श्रीराग और हिन्दोल राग-इन सबको पृथक-पृथक गाकर आठ ताल, तीन ग्राम और सात स्वरों से तथा हाव-भाव समंवित नाना प्रकार के रमणीय नृ त्योंसे कटाक्ष-विक्षेपपूर्वक व्रज गोपिकाएँ श्रीराधा और श्याम सुंदर को रिझाने लगीं। वहाँ से मधुर गीत गाते हुए माधव उन सुन्दरियों के साथ मधुवन में गये। वहाँ पहुँचकर स्वयं रासेश्वर श्रीकृष्ण ने रासेश्वरी श्रीराधा के साथ रासक्रीड़ा की। वैशाख मास के चन्द्रमा की चाँदनी में प्रकाशमान सौगन्धिक कल्हार-कुसुमों से झरते हुए परागों से पूर्ण तथा मालती की सुगन्ध से वासित वायु चल रही थी और चारों ओर माधवी लताओं के फूल खिल रहे थे। इन सबसे सुशोभित निर्जन वन में गोपांगनाओं के साथ श्रीकृष्ण उसी प्रकार रम रहे थे, जैसे नन्दनवन में देवराज इन्द्र विहार करते हैं । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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