गर्ग संहिता
विश्वजित खण्ड : अध्याय 20
प्रद्युम्न उस रथ को त्यागकर दूसरे रथ पर जा बैठे। इसके बाद उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण के दिये हुए धनुष को हाथ में लेकर उस पर विधिपूर्वक प्रत्यंचा चढ़ायी और एक बाण का संधान करके उसे अपने कान तक खींचा फिर बाहुदण्ड के वेग उस बाण को दुर्योंधन के रथ को ले उड़ा और दो घड़ी तक उसे आकाश से घुमाता रहा। तत्पश्चात जैसे छोटा बालक कमण्डलु को फेंक देता है, उसी प्रकार उस बाण ने दुर्योधन के रथ को आकाश से नीचे गिरा दिया। नीचे गिरने से वह रथ तत्काल चूर-चूर हो गया। उसके सभी घोडे़ सारथि सहित मृत्यु के ग्रास बन गये। महाबली धृतराष्ट्र पुत्र तत्काल दूसरे रथ पर जा बैठा। उसने दस सायकों द्वारा युद्धभूमि में प्रद्युम्न को घायल कर दिया। उन सायकों से आहत होने पर भी श्रीकृष्णकुमार प्रद्युम्न फल की माला से मारे गये हाथी की भाँति तनिक भी विचलित नहीं हुए। उन्होंने श्रीकृष्ण के दिये हए को दण्ड पर एक बाण रखा और उसे चला दिया। वह बाण रथ सहित दुर्धोधन को लेकर ज्यों ही महाकाश में पहुँचा, त्यों ही प्रद्युम्न का छोड़ा हुआ दूसरा बाण भी शीघ्र उसे लेकर और भी आगे बढ़ गया। तब तक तीसरा बाण भी वहाँ पहुँचा। उसने अश्व तथा सारथि सहित उस रथ को लेकर राजमन्दिर के आंगन में आकाश से धृतराष्ट्र के समीप इस प्रकार ला पटका, मानो वायु ने कमलकोष को उडा़कर नीचे डाल दिया हो। उस रथ को वहाँ गिराकर वह बाण रणभूमि में प्रद्युम्न के पास लौट आया। नीचे गिरते ही वह रथ अंगार की भाँति बिखर गया। दुर्योधन मुख से रक्त वमन करता हुआ मूर्च्छित हो गया। इस प्रकार श्रीगर्ग संहिता में विश्वजित खण्ड के अन्तर्गत नारद बहुलाश्व संवाद में ‘यादव कौरव युद्ध का वर्णन’ नामक बीसवां अध्याय पूरा हुआ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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