गर्ग संहिता
मथुराखण्ड : अध्याय 25
राजन् ! सुनो जो राजाधिराजों का हनन करने वाला अपने सगोत्र का घातक तथा तीनों लोकों को नष्ट करने के लिये प्रयत्नशील होता है, ऐसा महापापी भी मथुरा में निवास करने से योगीश्वरों की गति को प्राप्त है। उन पैरों को धिक्कार है, जो कभी मधुवन में नहीं गये। उन नेत्रों को धिक्कार है, जो कभी मथुरा का दर्शन नहीं कर सके। मिथिलेश्वर ! उन कानों को धिक्कार है जो मथुरा का नाम नहीं सुन पाते और उस वाणी को भी धिक्कार है, जो कभी थोड़ा-सा मथुरा का नाम नहीं ले सकी। विदेहराज ! मथुरा में चौदह करोड़ वन है, जहाँ तीर्थों का निवास हैं। इन तीर्थों में से प्रत्येक मोक्षदायक है। नामोच्चरण करता हूँ और साक्षात मथुरा को प्रणाम करता हूँ। जिसमें असंख्य ब्रह्माण्डों के अधिपति परिपूर्णतम देवता गोलेकनाथ साक्षात श्रीकृष्णचन्द्र ने स्वयं अवतार लिया, उस मथुरापुरी को नमस्कार है। दूसरी पूरियों में क्या रखा है ? जिस मथुरा का नाम तत्काल पापों का नाश कर देता है, जिसके नामोच्चरण करने वाले को सब प्रकार मुक्तियाँ सुलभ है। तथा जिसकी गली-गली में मुक्ति मिलती है, उस मथुरा को इन्हीं विशेषताओं के कारण विद्वान् पुरुष श्रेष्ठतम मानते है। यद्यपि संसार में काशी आदि पुरियाँ भी मोक्षदायिनी हैं, तथापि उन सब मे मथुरा ही धन्य है, जो जन्म, मौञ्जीव्रत, मृत्यु और दाह-संस्कारों द्वारा मनुष्यों को चार प्रकार की मुक्ति प्रदान करती है। जो सब पुरियों ईश्वरी, व्रजेश्वरी, तीर्थोश्वरी, यज्ञ तथा तप की निधिश्वरी, मोक्षदायिनी तथा परम धर्म-धुरंधरा है, मधुवन मे उस श्री कृष्णपुरी मथुरा को मैं नमस्कार करता हूँ। वेदेह राजेन्द्र ! जो लोग एकमात्र भगवान श्रीकृष्ण में चित्त लगाकर संयम और नियम पूर्वक जहाँ कहीं भी रहते हुए मधुपुरी के इस माहात्म्य को सुनते है, वे मथुरा की परिक्रमा के फल को प्राप्त करते है- इसमें संशय नहीं है। विदेहराज ! जो लोग इस मथुरा खण्ड को सब ओर सुनतें, गाते और पढ़ते हैं, उनको यहीं सब प्रकार समृद्धि और सिद्धियाँ सदा स्वभाव से ही प्राप्त होती रहती हैं। जो बहुत वैभव की इच्छा करने वाले लोग नियम पूर्वक रहकर इस मथुरा खण्ड का इक्कीस बार श्रवण करते हैं, उनके घर और द्वार को हाथी के कर्णतालों से प्रताड़ित भ्रमरावली अलंकृत करती है। इसको पढ़ने और सुनने वाला ब्राह्मण विद्वान होता है, राजकुमार यु़द्ध मे विजयी होता है, वैश्य निधियों का स्वामी होता है, तथा शुद्र भी शुद्ध निर्मल हो जाता है। स्त्रियाँ हों या पुरुष- इसे निकट से सुनने वालों के अत्यन्त दुर्लभ मनोरथ भी पूण जाते हैं। जो बिना किसी कामना के भगवान में मन लगाकर इस भूतल पर भक्ति-भाव से इस मथुरा-खण्ड को सुनता है, वह विघ्नों पर विजय पाकर, स्वर्गलोक के अधिपतियों को लाँघकर सीधे गोलोक-धाम में चला जाता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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