गर्ग संहिता
मथुराखण्ड : अध्याय 25
मथुरापुरी का माहात्म्य मथुरा खण्ड का उपसंहार बहुलाश्व ने पूछा- मुने ! जहाँ बलरामजी अकस्मात पहुँचे गये, वहाँ ऐसा उत्तम तीर्थ सुना गया। अहो ! मथुरापुरी धन्य है, जहाँ वे नित्य निवास करते हैं। मथुरा का देवता कौन है? क्षत्ता (द्वारपाल) कौन हैं ? उसकी रक्षा कौन करता हैं ? चार कौन है ? मन्त्रिप्रवर कौन हैं ? और किन-किन लोगों के द्वारा वहाँ भूमिका सेवन किया गया है ? श्रीनारदजी ने कहा- राजन् ! साक्षात परिपूर्णतम भगवान श्रीकृष्ण हरि मथुरा के स्वामी या देवता हैं। भगवान केशवदेव वहाँ के क्लेशनाशक हैं साक्षात भगवान ने कपिल नामक ब्राह्मण को अपनी वाराह मूर्ति प्रदान की थी। कपिल ने प्रसन्न होकर वह मूर्ति देवराज इन्द्र को दे दी। फिर समस्त लोकों को रूलाने वाला राक्षसराज रावण देवताओं को जीतकर उस मूर्ति का स्तवन करके उसे पुष्पक विमान पर रखकर लंका में ले आया उसकी पूजा करने लगा। मिथिलेश्वर ! तदनन्तर राघवेन्द्र श्रीराम लंका पर विजय प्राप्त करके भगवान वाराह को प्रयत्न पूर्वक अयोध्यापुरी में ले आये और वहाँ उनकी अर्चना करते रहे। तत्पश्चात शत्रुघ्न श्रीराम की स्तुति करके उनकी आज्ञा से उस वाराह विग्रह को प्रयत्नपूर्वक महापुरी मथुरा में ले आये और वहाँ वाराह भगवान की स्थापना करके उनको प्रणाम किया। फिर समस्त मथुरावासियों ने उन वरदायक भगवान की सेवा-पूजा प्रारम्भ की। वे ही ये साक्षात कपिल -वाराह मथुरापुरी में श्रेष्ठ मन्त्री माने गये हैं। 'भूतेश्वर' नाम से प्रसिद्ध भगवान शिव मथुरा के द्वारपाल या क्षेत्रपाल हैं। वे पापियों को दण्ड देकर भक्ति के लिये उन्हें मन्त्रोपदेश करते हैं। महाविद्या स्वरूपा दुर्गम कष्ट दूर करने वाली चण्डिका देवी दुर्गा सिंह पर आरूढ़ हो सदा मथुरापुरी की रक्षा करती हैं। मैं (नारद) ही मथुरा का चार (गुप्तचर) हुँ और इधर-उधर लोगों पर दृष्टि रखकर सबकी बात महात्मा श्रीकृष्ण को बताता हूँ। विदेहराज ! नगर के मध्य-भाग में स्थित शुभदायिनी करूणामयी मथुरा देवी समस्त भूखे लोगों को अन्न प्रदान करती हैं। मथुरा में मरे हुए लोगों को विमानों द्वारा ले जाने लिये श्याम अंग वाले चार भुजाधारी श्रीकृष्ण पार्षद आते-जाते रहते हैं । महापुरी मथुरा, जिसके दर्शनमात्र से मनुष्य कृतार्थ हो जाता है, श्रीकृष्ण के अंग से प्रकट हुई है। पूर्वकाल में ब्रह्माजी ने मथुरा में आकर निराहार कहते हुए सौ दिव्य वर्षों तक तपस्या की। उस समय वे परब्रह्म श्रीहरि के नाम का जप करते थे, इससे उन्हें स्वायम्भुव मनु जैसे प्रवीण पुत्र की प्राप्ति हुई। नृपराज ! सतीपति देववर भूतेश मधुवन में एक सौ दिव्य वर्ष तक तप करके श्रीकृष्ण की कृपा से तत्काल मथुरापुरी और माथुर मण्डल के क्षेत्रपाल हो गये। श्रीकृष्ण कृपा प्रसाद से ही मैं मथुरा मण्डल का चार बना हूँ और सदा भ्रमण करता रहता हुँ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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