गर्ग संहिता
मथुराखण्ड : अध्याय 18
तमोगुणवृति रूपा गोपियाँ बोलीं- जिन छली-बली श्रीहरि ने पूर्वकाल में वृन्दा को छला था, इन्हीं को आज छलमयी और बलवती कुब्जा ने छल लिय। (जैसे को तैसा मिला।) कटार या कृपाणिका एक ही ओर से टेढी होती है, तथापि बहुत-से लोगों का घात करती है, इधर कुब्जा तो तीन जगह से टेढी है, उसे तीन जगह से टेढे श्रीकृष्ण मिल गये, फिर वह कितनों-का घात करेगी, कुछ कहा नहीं जा सकता। श्रीकृष्ण की राह देखते-देखते हमारी आँखे बहुत दुखने लगी हैं और उनके आने की अवधि वामन के पादविक्षेप की तरह बढती ही जाती है। इस माधवमास में माधव के बिना हमारे शरीर का चमड़ा पीला पड़ गया, हमारी गति में शिथिलता आ गयी - पाँव थक गये और मन अत्यन्त उद्भ्रान्त हो गया है। हा दैव ! किस समय समय हम सब उष:काल में सौते के हार के चिन्ह से चिह्नित होकर आये हुए नन्दनन्दन को देखेंगी। नारदजी कहते हैं– राजन् ! इस प्रकार श्रीकृष्ण का चिन्तन करती हुई प्रेमविह्वला गोपियाँ उत्कण्ठित हो रोने लगीं और मुर्च्छित हो पृथ्वी पर गिर पड़ी। तब पृथक-पृथक सबको आश्वासन दे, नीति-निपुण वचनों द्वारा सब गोपियों को समझा-बुझाकर उद्धव ने श्रीराधा से कहा। उद्धव बोले- परिपूर्णतमे ! कृष्णस्वरूपे ! वृषाभानुवर नन्दिनि ! मुझे जाने की आज्ञा दीजिये। व्रजेश्वरि ! आपको नमस्कार है। शुभे ! महात्मा श्रीकृष्ण को उनके पत्र का उत्तर दीजिये। उसके द्वारा शीघ्र ही उनके चरणों में प्रणाम करके मैं उन्हें आपके पास ले आउँगा। श्रीनारदजी कहते हैं- राजन् ! तदनन्तर राधा तुरंत ही लेखनी और मसीपात्र लेकर समाचार का चिन्तन करने लगीं, तब तक उनके नेत्रों से अश्रुवर्षा होने लगी। श्रीराधा ने जो-जो पत्र हाथ में लेकर उसे लेखनी संयुक्त किया, वह-वह उनके नेत्र-कमलों के नीरस भीग गया। श्रीकृष्ण दर्शन की लालसा से अश्रु-धारा बहाती हुई कमलनयनी राधा से विस्मित हुए उद्धव ने कहा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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