गर्ग संहिता
माधुर्य खण्ड : अध्याय 12
इस भूमण्डल पर पीताम्बर की पीत प्रभा से सुशोभित उनके श्याम कान्ति मण्डल उसी प्रकार उत्कृष्ट शोभा पा रहा है, जैसे आकाश में इन्द्रधनुष से युक्त मेघ मण्डल सुशोभित होता है। अबीर और केसर के रस से उनका सारा अंग लिप्त है। उन्होंने हाथ में नयी पिचकारी ले रखी है तथा सखि राधे ! तुम्हारे साथ रासरंग की रसमयी क्रीड़ा में निमग्न रहने वाले वे श्याम सुन्दर तुम्हारे शीघ्र निकलने की राह देखते हुए पास ही खडे़ है।[1] तुम भी मान छोड़कर फगुआ (होली) के बहाने निकलो। निश्चय ही आज होलिका को यश देना चाहिये और अपने भवन में तुरंत ही रंग-मिश्रित जल, चन्दन के पंख और कमकरन्द (इत्र आदि पुष्परस) का अधिक मात्रा में संचय कर लेना चाहिये। परम बुद्धिमति प्यारी सखी ! उठो और सहसा अपनी सखीमण्डल के साथ उस स्थान पर चलो, जहाँ वे श्याम सुन्दर भी मौजूद हों। ऐसा समय फिर कभी नहीं मिलेगा। बहती धारा में हाथ धो लेना चाहिये- यह कहावत सर्वत्र विदित है। श्रीनारदजी कहते हैं– राजन् ! तब मानवती राधा मान छोड़कर उठीं और सखियों के समूह से घिरकर होली का उत्सव मनाने के लिये निकलीं। चन्दन, अगर, कस्तुरी, हल्दी तथा केसर के घोल से भरी हुई डोलचियाँ लिये वे बहुसंख्यक व्रजांगनाएँ एक साथ होकर चलीं। रँगे हुए लाल-लाल हाथ, वासन्ती रंग के पीले वस्त्र, बजते हुए नूपूरों से युक्त पैर तथा झनकारती हुई करधनी से सुशोभित कटिप्रदेश बड़ी मनोहर शोभा थी उन गोपांगनाओं की। वे हास्ययुक्त गलियों से सुशोभित होली के गीत गा रही थीं। अबीर-गुलाल के चूर्ण मुठ्ठियों में ले-लेकर इधर-उधर फेंकती हुई वे व्रजांगनाओं भूमि, आकाश और वस्त्र को लाल किये देती थीं। वहाँ अबीर की करोड़ों मुठ्ठियाँ एक साथ उड़ती थीं। सुगन्धित गुलाल के चूर्ण भी कोटि-कोटि हाथों से बिखेरे जाते थे। इसी समय व्रजगोपियों ने श्रीकृष्ण को चारों ओर से घेर लिया, मानों सावन की साँझ में विद्युन्मालाओं ने मेघ को सब ओर से अवरूद्ध कर लिया हो पहले तो उनके मुँह पर खूब अबीर और गुलाल पोत दिया, फिर सारे अंगों पर अबीर-गुलाल बरसाये तथा केसर युक्त रंग से भरी डोलचिायों द्वारा उन्हें विधिपूर्वक भिगोया। नृपेश्वर ! वहाँ जितनी गोपियाँ थी, उतने ही रूप धारण करके भगवान भी उनके साथ विहार करते रहे। वहाँ होलिका महोत्सव में श्रीकृष्ण श्रीराधा के साथ वैसी ही शोभा पाते थे, जैसे वर्षाकाल की संध्या-वेला में विद्युन्माला के साथ मेघ सुशोभित होता है। श्रीराधा ने श्रीकृष्ण के नेत्रों में काजल लगा दिया। श्रीकृष्ण ने भी अपना नया उत्तरीय (दुपट्टा) गोपियों को उपहारा में दे दिया। फिर वे परमेश्वर श्रीनन्दभवन को लौट गये। उस समय समस्त देवता उनके ऊपर फूलों की वर्षा करने लगे। इस प्रकार श्रीगर्ग संहिता में माधुर्य खण्ड के अन्तर्गत श्रीनारद बहुलाश्व संवाद में ‘होलिकोत्सव के प्रसंग में ‘दिव्यादिव्य –त्रिगुणवृत्तिमयी भूतल-गोपियों का उपाख्यान’ नामक बारहवाँ अध्याय पूरा हुआ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्री यौवनोन्मदविघूर्णितलोचनोऽसौ नीलालकालिकलितांसकपोलगोल:।
सत्पीतकञ्चुकधनान्तमशेषमारादाचालयन् धवनिमता स्वपदारुणेन।।
बालार्कमौलिविमलाङ्गदहारमुद्यद्विद्यत्क्षिपन्मकरकुण्डलमादधान: ।
पीताम्बरेण जयति द्युतिमण्डलोऽसौ भूमण्डले स धनुषेव घनों दिविस्थ:।।
आबीरकुङ्कुमरसैश्च विलिप्तदेहो हस्ते गृहीतनवसेचनयंत्र आरात् ।
प्रेक्षंस्तवाशु सखि वाटमतीव राधे त्वद्रासरङ्गरसकेलिरत: स्थित: स: ।।-(गर्ग. माधुर्य. 121। 8-10)
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |