आज पीछे सखी तेरे, घर नहिं आऊंगो।
नन्द की दुहाई, तेरो माखन नहिं खाऊंगी।।
ऐसी मार मारेगी तो दो दिन में मर जाऊंगी।
एरी तज्या मेरा माखन का खाना।। तुम. 5 ।।
ले चली गोप की नार, नन्द के द्वार, चालकर आई
मोहन पर दामण गेर, छिपाकर लाई।
जब होन लग्या परभात, यशोदा मात जाग कर आई।
यह देख तेरो नन्द लाल दही मेरो खाई।।
क्यूं न रही धैया धैया, यूं कहे जसोदा मैया।।
वो दिन में चरावे गैया मेरो सूत्यो है कृष्ण कन्हैया।।