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अपनो गाँव रखो नन्दरानी, हम कहिं दूर बसेंगी जाय।। टेर ।।
तेरे लाल के गुन सुनरी, कहूँ तोय समझाय।
देखन में छोटो सो लागे, हाल बड़ो है जाय।। 1 ।।
सूनी बाखर खोल के साँकर, वह भीतर घुस जाय।
छींका में ते माखन खावे, दूध दही ढ़रकाय।। 2 ।।
मैं जल जमुना नहान जात री, चीर चोर लै जाय।
लेके चीर कदम पर बैठो, गूठा रयो दिखाय।। 3 ।।
एक दिना मोहन को पकर्यो, दुबक छिपक कर जाय।
अपनो हित छुड़ाय गयो देवर को कर पकराय।। 4 ।।
‘चन्द्रसखी’ भजु बालकृष्ण छबि, लाल कूँ लेओ समुझाय।
वृन्दावन की कुञ्ज गलिन में लूट लूट दधि खाय।। 5 ।।