(174)
जसोदा हरि पालने झुलावे।
हलरावे दुलराइ नुहावे, जोइ सोइ कछु गावे।।
मेरे लाल को आवो निदरिया, काहेन आनि सुआवे।
तूँ काहे नहिं बेगिहि आवे, तोकहुँ कान्ह बुलावे।।
कबहु पलक हरि मूँदि लेत है, गबहु अधर हलकावे।
सोवत जानि मौन भये कह रहि,, करि करि सेन बतावे।।
एहि अंतर अकुलाइ उठे हरि, जसुमति मधुरै गावे।
जो सुख सूर अमर मुनि दुरलभ, सो नन्द भामिनि पावे।।