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ओ बंसी वाला साँवरिया थाँने काईं आलमो द्यूँ।। टेर ।।
बलि के द्वारे जाचण चाल्या, छोटा बणग्या क्यूँ।
तीन पैंड में सब जग नाप्यो, लम्बा बढ़ग्या क्यूँ।। 1 ।।
कपि सुग्रीव मित्र कर राख्यो, प्रेम बढ़ायो क्यूँ।
बिरछन लारे छिपकर के बाली ने मार्यो क्यूँ।। 2 ।।
मथुरा में तो जनम लियो, गोकुल में आया क्यूँ।
ब्रज बासिन पर मोहिनि डारी, प्रीत लगाई क्यूँ।। 3 ।।
अरध रैण के समय श्याम तुम बंसी बजाई क्यूँ।
छोडयो कुटुम्ब शरण में आई अब बिसराई क्यूँ।। 4 ।।
बन बन माहीं फिरी भटकती, आ निठुराई क्यूँ।
‘चन्द्रसखी’ थे छिप्या श्याम म्हाँने तरसाई क्यूँ।। 5 ।।