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पकरौ री ब्रज नार कन्हैया होरी खेलन आयो है।। टेर ।।
संग में अति उतपाती ग्वाल, हाथ पिचकारी फेंट गुलाल,
नाच रहे डफ बजाय दे ताल, कमोरी रंगन की भरि लायो है।। पकरौ.1 ।।
लेऔ पिचकारी सबहि छिनाय, श्यामकूँ गोपी देऔ बनाय,
कंचुक कटि लहँगा पहराय, करौ सबही अपने मन भायो है।। 2 ।।
एकहू ग्वाल जाय नहिं भाज, मलौ मुख ऊपर गोबर आज,
लाज को होरी में नहिं काज, बड़े भागिन ते फागुन आयौ है।। 3 ।।
दई आग्या बृषभानु कुमार, है गई सावधान बृजनार,
आय गये तबही कृष्ण मुरार, गरज होरी कौ शब्द सुनायौ है।। 4 ।।
फेंट ते लियो गुलाल निकार, दियो श्यामा के ऊपर डार,
सखिन के मोंहड़े दिये बिगाड़, मनसुखा हल्ला खूब मचायो है।। 5 ।।
उड़ावै भर भर मुठी गुलाल, है गये धरती बादर लाल,
उछर कर कूद रहे सब ग्वाल, दाँव जब बृज गोपिन नें पायौ है।। 6 ।।
भाज मोहन को पकरी जाय, सखी नै गुलचा दिये जमाय,
लई पिचकारी तुरत छिनाय, श्याम को गोपी रूप बनायौ है।। 7 ।।
चतुरता सबकी दई भुलाय, साँवरौ झुकि झुकि हा हा खाय,
किशौरी मन्द मन्द मुसकाय, नन्द कौ घूँघट मार नचायौ है।। 8 ।।