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रँग डारत लाज न आई, नँदजी के कुँअर कन्हाई।। टेर ।।
पी पी छाछ भये तुम्ह धींगर, घर घर धूम मचाई।
गुलचा खाये भूलिगये अब करन लगे ठकुराई।
सखी याने शरम न आई।। 1 ।।
हात लकुटिया काँधे कमरिया, बन बन धेनु चराई।
दोय बापन के बारे मोहन, छाँड़त नहिं लँगराई।
कहौं तेरी मैया सों जाई।। 2 ।।
ऊँखर ते जब बाँधि जसोदा, रहे अँसुववन ढरकाई।
वे दिन अपने भूल गये लाला, अब रहे आँख दिखाई।
कबहु मेरे घर आई।। 3 ।।
बगर परौसन सँग की सहेली पाँव परत सब धाई।
‘चन्द्रसखी’ भज बालकृष्ण छबि चरन कमल बलि जाई।
सखी भीजत घर आई।। 4 ।।