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मोहन तेरी फिरि फिरि जात सगाई।। टेर ।।
माखन चोर कहावत बृज में, चरचित लोग लुगाई।
घर माखन मिसरी नहिं भावे, पर घर खात चुराई।
कहत गोपिजन नित ही माँगत, दधि को दान कन्हाई।
रोकत बाट हाट गलियन में, ऐसी धूम मचाई।
ग्वालिन चीर चुराकर बैठो, बंसीवट पर जाई।
गोपी ग्वाल चराचर मोहे, ऐसी बेनु बजाई।
‘श्रीनिधि’ श्याम नाम गुन गाये, सफल भई कविताई।