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तर्ज - कसूमो
बनवारी म्हारा कृष्ण मुरारी रे, गिरधारी।। टेर ।।
थाँरे तो खातिर साँवरा गंगाजल लाई, भर सोने की झारी रे।। 1 ।।
थाँरे तो खातिर साँवरा बाग लगायो, बिच केसर की क्यारी रे।। 2 ।।
थाँरे तो खातिर साँवरा महल चिनायो, बिच बिच राखी बारी रे।। 3 ।।
थाँरे तो खातिर साँवरा भोजन बनायो, छप्पन भोग की त्यारी रे।। 4 ।।
थाँरे तो खातिर साँवरा हिंडोलो घलायो, झूलो कुंजबिहारी रे।। 5 ।।
थाँरे तो खातिर साँवरा सब कुछ छोड्या, आई शरण तिहारी रे।। 6 ।।
‘चन्द्रसखी’ भजु बालकृष्ण छबि, चरन कमल बलिहारी रे।। 7 ।।