(208)
नन्द के कन्हैया मैं तो लीन्हो तेरो आसरो।। टेर ।।
तूँ हीं मेरो माता पिता, तूँ हीं बन्धु अन्न दाता,
मेरे है भरौसो एक कमल निवास रो।। 1 ।।
रैन में ज्यों चन्द को है, भँवरे के सुगंध को है,
इन्द्रिन्ह के मन को है, तन के ज्यों साँस रो।। 2 ।।
प्रजा के ज्यों भूप को है, कबूतर के कूप को है,
गनिका के रूप को है, पशु के ज्यों घास रो।। 3 ।।
नारी के ज्यों पति को है, कवि के ज्यों मति को है,
ऐसो बिसवास तो पै कृष्ण तेरे दास रो।। 4 ।।