(178)
याके माखन को लग गयो चसको, श्याम नहीं किन के बस को।।
जसुदा दौड़े कृष्ण के पीछे, माट फोर दियो गौरस को।।
पकरि मात उँखल के बाँध्यो, अँसुवन ढ़ार करै टसको।।
अरजुन वृक्ष खड़े दोय आँगन, ऊँखल को अटकाय खसक्यो।।
घररररर घरराट मच्यो है, उखड़े वृक्ष श्याम मुसक्यो।।
वृक्षन माहिं देव दोय प्रगटे, खूब बखान करे जस को।।