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हमारी वृन्दावन रजधानी।
ठाकुर नंदकिशोर लाड़िलो भानु सुता ठकुरानी।। टेर ।।
बिहरत नव निकुञ्ज महँ हरदम पावन प्रीत सुहानी।
अष्ट सखिन की सेवा निसदिन अमृत रस भरि बानी।। 1 ।।
रसिकन के सिरमौर श्यामघन श्यामा रस की खानी।
रस ही रस बरसात रहत नित दोनों रस के दानी।। 2 ।।
जाहि प्रीत हित जतन करत मुनि कठिन नियम व्रत ठानी।
साधत जप तप जोग समाधी बीति जात जिंदगानी।। 3 ।।
सोइ प्रेम सुलभ या व्रज में गोप सुता पहिचानी।
‘श्यामसखा’ चुप साधि शरन लै कहु कस जात बखानी।। 4 ।।