(69) तर्ज - रसिया
बरजो बरजो अरी जसोदा, ऐसो चंचल तेरो कान्ह।।
कैसो पूत सपूत जन्यो, तू सुनलेरी दे ध्यान।। टेर ।।
नवलख गैयाँ दूझत तेरे, दूध दही की खानि।
मेरे घर माखन चोरन की, परिगई यानें बानि।। 1 ।।
ले माखन बन्दरन को देवे, करे सदा नुकशान।
समझायो समझे नहिं कपटी, हो गई मैं हैरान।। 2 ।।
चूल्हो फूंकत रोटी पोवत, छेड़े मुरली तान।
घर को काज बिसरि जाऊं प्यारी, रहे न तनको भान।। 3 ।।
कुन्ज गलिन को मारग रोके, माँगत दधि को दान।
क्रोध करूं डाँटूँ नहिं माने, खड्यो करे मुसकान।। 4 ।।
आज तलक सब माफ करूंरी, राख्यो तेरो मान।
दे गुलचा अब मार लगाऊं, घर नहिं दूंगी जान।5 ।।
नटवर ने निरखत नित गोपी, नित प्रति देह उत्हान।
‘श्यामसखा’ माता ढिग बैठयो, बृज मण्डल को प्रान।। 6 ।।