(16) तर्ज - कसूम्बो
ओ तो अजब रँगीलो छैल रे, साँवरियो।। टेर ।।
कठे कठे जावे कान्हू बिना बुलायो, कठे मचवावे हेला हेल रे।। 1 ।।
कठे कठे जावे कान्हू पगाँ सूं उभाणू, कठे तो जुतावे गाड़ी बैल रे।। 2 ।।
कठे तो बरषावे कान्हू नान्ही नान्ही बूँदाँ, कठे तो करदेवे रेलापेल रे।। 3 ।।
कठे तो छावे कान्हू छोटी सी झुँपड़ियाँ, कठे तो चिनावे
ऊँचा महल रे।। 4 ।।
कह नरसीलो सुन म्हारा साँवरा, चित्त थाँरे चरणाँ में झेल रे।। 5 ।।