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होरी में गये हार, सकल खल दल संहारी।। टेर ।।
सखि सहचरि सब को ले सँग में, रंग भरी पिचकारी।
श्याम बदन कोमल सब तन पर, हेरि हेरि कै मारी।
रँगीली किरति कुमारी।। 1 ।।
लाल कपोल गुलाल लपेटे, दृग सुरभित जल डारी।
भाजि चले मनमोहन सोहन, पौंछत नयन निवारी।
हँसी सखी दे दे तारी।। 2 ।।
मुरली कर सौं परी धरनी पर, मोर शिखा महि डारी।
श्रमित भये मृदु चरन डगमगत, बैठि गये मन मारी।
घेर लई सखिन्ह मुरारी।। 3 ।।
बोली व्यंग बचन हँसि सखियन, बीर बड़े गिरधारी।
सहि न सके नारिन्ह की कोमल, कर कमलन्ह पिचकारी।
लाज कहाँ सकल बिसारी।। 4 ।।
सुनि सखि बचन सकुचि हरि बोले, सुनु बृषभानु दुलारी।
मैं तोसें प्रिय सब विधि हार्यो, हार नई क्या हमारी।
चरन रज हौं बलिहारी।। 5 ।।
सुनि मृदु बचन श्रमित लखि पिय को, दुखित भई हिय भारी।
लीन्ह किशोरी उठाइ प्रानधन, सिंहासन बैठारी।
करन लगि बसन्ह बयारी।। 6 ।।
पौंछत अंग सुभग निज पट सौं, श्री वृजभानु दुलारी।
मुख धोवत सुरझावत अलकें, निज कर सौं पिय प्यारी।
मुदित भई लखि बृज नारी।। 7 ।।