श्रीकृष्ण विवाह महोत्सव
(115) तर्ज - कसूमो
आज म्हारे ठाकुर जी रो ब्याह रच्यो है।
हँस-हँस मंगल गावो हे सहेल्यो।
हिल-मिल मंगल गावो हे सहेल्यो।। टेर ।।
आवो ये सहेल्यो आपां चैक पुरावां।
चैक पुरावाँ आपां कान्हा ने बैठावाँ।
घणाँ घणाँ लाड लडावाँ हे सहेल्यो।। 1 ।।
केवड़ा गुलाब से स्नान करावाँ।
कर सिंगार आपां भोग लगावाँ।
पुष्पां री माला पहनावाँ हे सहेल्यो।। 2 ।।
माथे पे प्रभुजी के मुकुट लगावाँ।
मौर चन्द्रिका किलंगी सजावाँ।
रतन हार पहनावाँ हे सहेल्यो।। 3 ।।
अधरामृत पर मुरली सोहे।
पीत पीताम्बर मनड़ो मोहे।
हाथाँ में महँदी लगावाँ हे सहेल्यो।। 4 ।।
कर सिंगार किसारी ने बुलावाँ।
श्याम सुन्दर को ब्याह रचावां।
जोड़ी रा दरशण पावाँ हे सहेल्यो।। 5 ।।