(7) तर्ज - प्रभाती
आवोजी नन्द जी का लाला, माखन मिसरी खाबाने।। टेर ।।
थे आज्यो कोई सँग मत ल्याज्यो, नहिं छै दही लुटाबाने।
एक जावणी दही जमायो, थाँरे भोग लगाबाने।। 1 ।।
ऊँची मेड़ी पलँग झरोखा, हूँ छूं सेज बिछाबाने।
मीराँ के प्रभु गिरधर नागर, रँगभर रास रचाबाने।। 2 ।।
(8) तर्ज - बाँसुरियाँ कहाँ भूल
कन्हैया प्यारा आवज्यो थे, छाँने छाँने छाँने।। टेर ।।
रस्तो छोड़ गली से आज्यो, कोई नहीं पिछानें।
काली कमल ओढ़ कर आज्यो, माखन मिसरी खानें।। 1 ।।
मैं समझाऊं तोय साँवरा, बात करो थे क्याँनें।
दाऊजी को खबर पड़ेगी, मैया देगी तांनें।। 2 ।।
प्रीत करो तो ऐसी कीज्यो, पड़े न किसे कानें।
मीराँ के प्रभु गिरधर नागर, दासी रखज्यो म्हानें।। 3 ।।