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हमरौ ठाकुर नंगम नंगा, ब्रज की धूल लपेटत अंगा।। टेर ।।
जाकी उपमा कहि न सके कोउ, सब जग बीच निराले ढंगा।। 1 ।।
नंद भवन में धूम मचावत, श्यामल अंग सुललित त्रिभंगा।। 2 ।।
जाकी रति इनके चरनन में, उनके भाग्य बड़े हैं चंगा।। 3 ।।
अद्भुत खेल सखन सँग खेलत, भैया हलधर शेष भुजंगा।। 4 ।।
जाके चरन कमल से निकसी, भागीरथि जग पावनि गंगा।। 5 ।।
सोइहि ब्रज की गलिन गलिन में, डोलत ज्यों उपवन विच भृगा।। 6 ।।
नंद जसोदा के आँगन में, मटुकी फोरत करत अड़ंगा।। 7 ।।
याकी कृपा जीव एहि जानत, करत सदा संतन कर संगा।। 8 ।।