(74) हमरौ न्याव करौ बृज नारी। या बृज में प्रगट्यो उतपाती, तेरौ पूत अनारी।। बिनु बातन हमसौं नित अटके, ढीठ बड़ौ अति भारी।। अँचरा झटक पटक सिर गागर, ठाड़ौ दे मोकू गारी।। तुम याको घर में नहिं बरजौ, कुल की रीत बिगारी।। नारायण कछु जान परत है, याही सीख तुम्हारी।।