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हमारी सबही बात सुधारी।
कृपा करी श्री कुञ्ज विहारिनि, अरु श्री कुञ्जविहारी।। टेर ।।
सख्यो अपने बृन्दावन में, जिहिं थल रूप ऊजारी।
नित्य केलि आनन्द अखण्डित, रसिक संग सुखकारी।। 1 ।।
कलह कलेस न ब्यापत एहि थल, ठौर विश्व ते न्यारी।
‘नागरिदासहिं’ जनम जितायो, बलिहारी बलिहारी।। 2 ।।