(126) तर्ज - मैं तो हूं भक्तन को
मेरे दिल में तो ये ही बड़ा चाव मैं खाते देखूं मोहन को।। टेर ।।
सेज कुञ्ज पर बैठे मोहन, छटा रहे छिटकाय।
कैसी छबि है प्यारी-प्यारी, मन्द मन्द मुसकाय।। 1 ।।
कोई सखी फुलवा ले आई, कोई करे श्रृंगार।
कोई सखी दरपण दिखलावे, कोई पहनावे गलहार।। 2 ।।
कोई माखन मिसरी लाई, कोई दूध अरु भात।
हमें देख शरमाय गये हैं, दोनों ही खाय रहे साथ।। 3 ।।
कोई सखी जल झारी लाई, कोई चँवर ढुराय।
कोई पान का बिड़ला लाई, चाँदी के बरक लगाय।। 4 ।।
‘मीराँ’ के प्रभु गिरधर नागर, उर उमगे अनुराग।
अब तो प्रभु जी दरसन दीजो, धन्य धन्य मेरे भाग।। 5 ।।