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पलभर चैन नहीं अब मुजको, तुम बिन कृष्ण मुरारी रे।
हे जसोमति के कुँअर लाड़ले, दरशन दे बनवारी रे।। टेर ।।
धन जन मित्र कुटुम्ब सुत दारा, सबसे मन उकतावे है।
खान पान रस भोग जगत के, जहर समान लखावे है।।
ऊठत बैठत जागत सोवत, लागी लगन तुम्हारी रे।। 1 ।।
नकल प्रेम से तूँ नहिं रीझे, असल प्रेम मुज में नाहीं।
तुहीं बता दे लाउँ कहाँ से, मिले नहीं बजार माहीं।।
नकली ने अब असल बना दे, हे पतितन हितकारी रे।। 2 ।।
लगा दिया है अब तो मैंने, तेरे द्वारे पर डेरा।
क्यों तुम देरी करो श्याम अब तड़फ रहा है दिल मेरा।।
‘श्यामसखा’ मेरे जीवन धन तेरी मेरी यारी रे।। 3 ।।