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कान्हा थाँरो भगती देओ निषकाम।
किरपा ऐसी कीज्यो जी, ओजी घनश्याम।। टेर ।।
कान्हा थाँरो सिवरूँ आठों याम,
किरपा ऐसी कीज्यो जी, ओजी घनश्याम।। 1 ।।
कान्हा थाँरो जपूँ निरंतर नाम,
किरपा ऐसी कीज्यो जी, ओजी घनश्याम।। 2 ।।
कान्हा म्हारा लोभी ने ज्यूँ दाम,
ऐसा प्यारा लागो जी, ओजी घनश्याम।। 3 ।।
कान्हा थाँरो सुन्दर रूप ललाम,
दरशण देता रीज्यो जी, ओजी घनश्याम।। 4 ।।
कान्हा थाँरो पूरा करूँ आठो याम,
चाकर म्हाँने राखो जी, ओजी घनश्याम।। 5 ।।
कान्हा थाँरो दिव्य वृन्दावन धाम,
म्हाँने ही दिखाओ जी, ओजी घनश्याम।। 6 ।।
कान्हा थाँरे चरणा में पाऊँ बिसराम,
किरपा ऐसी कीज्यो जी, ओजी घनश्याम।। 7 ।।