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समझादे पड़ाँ हे थाँरे पाँय, जसोदा थाँरे सुतने हे।
म्हे तो लम्बा लम्बा जोड़या दोन्यू हात, जसोदा थाँरे सुतने हे।।
जसोदा के आँगणे में गोप्याँ आई सात।
भेली होकर कहबा लागी, अपणी अपणी बात।। समझा. 1 ।।
थाँरो कुंअर बड़ो उतपाती, नित म्हारे घर आवे।
सूनी बाखल देख वो तो, चुपके से घुस ज्यावे।
माखन खावे मचावे उतपात, छोराँ ने ल्यावे सँग में हे।। 2 ।।
मैं तो पानी भरबा चाली, जमनाजी के तीर।
मटकी ऊपर काँकर मारी, बलदाऊ को बीर।।
पीछें दौड़ी तो हात कोनी आय, छिप्यो है थाँरे घर में है।। 3 ।।
मैं तो रोटी पोवण बैठी, आयो म्हारे द्वार।
भर भर लोटा आटे माहीं, पानी दीन्हो डार।।
बाहर भाग्यो अंगूठा दिखलाय, रह्यो ना म्हारे वश में हे।। 4 ।।