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आज मेरो कहाँ अटक्यो गिरधारी।। टेर ।।
खोजत-खोजत फिरत जसोदा, घर घर करत पुछारी।
कारन कवन लाल नहिं आयो, कंसहु को भय भारी।। 1 ।।
झुण्ड-झुण्ड सखियाँ चलि आई, देत जसोदा को गारी।
नन्द नन्दन को जोर जुठौनो, खेंचत अंचल सारी।। 2 ।।
रुनक झुनक मोहन चलि आये, नीर नयन भरि बारी।
मुरली मेरी छीन लई है, इन सखियन मोहि मारी।। 3 ।।
हँसि मुसुकावत कहत ग्वालिनी, दूषण नहिं है हमारी।
श्याम सुन्दर मैं तुम्हरे दरस को, ‘चन्द्रसखी’ बलिहारी।। 4 ।।