झूलन लीला
(127) तर्ज - गोपीचन्द
घनश्याम बुलावे, झूलन नें चाला राधे बाग में।। टेर ।।
झूलन चालो बाग में सखी, सज सोलह श्रृंगार।
पहन सकल आभूषण सजनी, निरखो नन्द कुमार जी।। 1 ।।
मलयागिरि को बन्यो हिंडोलो, डोरी रेशम तार।
झूलो आप झुलावे मोहन, गावे राग मल्हार जी।। 2 ।।
छटा छबीली बाग की जी, खिल रही केशर क्यार।
चम्प चमेली खिली केतकी, भंवर करत गूंजार जी।। 3 ।।
शिव सनकादिक, अरु ब्रह्मादिक, कोई न पावे पार।
दास नारायण शरण आपकी, करज्यो बेड़ा पार जी।। 4 ।।