(183) तर्ज - धमाल
सबड़को मार के कन्हैया थोड़ो दहीड़ो चखाय।
दहीड़ो चखाय थोड़ो माखन भी चखाय।। सबड़को।। टेर ।।
नन्द महर का लाड़ला रे बलदाऊ का बीर।
तूँ मत खाई एकलो रे थाँरो म्हारो सीर।। 1 ।।
ऊँखल उलटो मेलदे-रे ऊपर तूँ चढ़ जाय।
हाँडी ऊपर छेद कर दे धरणीं पर ढुर जाय।। 2 ।।
आँख्याँ फाड्याँ देखताँ रे तूँ माखन गटकाय।
थोड़ी सी परसादी दे दे, क्यूँ म्हानें तरसाय।। 3 ।।
भोली दुनियाँ जाने कान्हों खाय पराया माल।
तूँ हीं बृज की गैया लाला, तूँ हीं गोपी ग्वाल।। 4 ।।