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मटकी छोड़ कन्हाई मेरी, तूँ क्यों रार मचाई रे।। टेर ।।
छींक होत मैं घर सौं निकसी, सनमुख मिल गयो आई रे।
ना कछु यामें माखन मिसरी, ना कछु धरी मिठाई रे।। 1 ।।
कोरी मथनियाँ दही जमायो, आजहि नई मँगाई रे।
जो सुनि पावै कंसराज तेरि निकस जाय ठकुराई रे।। 2 ।।
तूँ तो कंसराज की चेरी, झूठी करत बड़ाई रे।
चोटी पकड़ कंस को मारूँ, बृज की करूँ सहाई रे।। 3 ।।
धनि वृन्दावन नन्द गाँव धनि, धन्य यशोदा माई रे।
सूरदास प्रभु गोकुल प्रगटे, भक्तन के सुखदाई रे।। 4 ।।