(148)
खेले संत सकल मिल होरी।
रहे हरि रँग महँ बोरी।। टेर ।।
शंकर ताल मृदंग बजावत, ग्वाल डफन की जोरी।
नारद व्यास अंगिरा नाचत, गौलोकन की पौरी।
अगुआ श्याम बन्यो री।। 1 ।।
ध्रुव प्रहलाद विदुर अरु भीषम, ऊद्धव अरजुन जोरी।
गोपीजन दौपदि अरु मीराँ, इन्ह सब मिल रँग घोरी।
रही भक्तन्ह पर ढ़ोरी।। 2 ।।
गूह निषाद विभीषन अंगद, हनुमत रंग रँग्यो री।
बलि राजा अम्बरीष सुदामा, मुचकुन्द आन मिल्योरी।
वृत्रासुर भयो बड़ जोरी।। 3 ।।
सब संतन मिलि पकरि श्याम को, बाँध्यो प्रेम की डोरी।
तुलसी ननक दास कबीरा, ‘सूर’ भी संग लग्यो री।
मची ऐसी होरी ही होरी।। 4 ।।