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गाये जो गीत मोहन के तूँ नँदनंदन के अगर सुख पाना है।। टेर ।।
इस दुनियाँ का झूठा पसारा, ना हम किसके न कोई हमारा।
साथी हैं सब ही तन के स्वारथी धन के छोड़ सब जाना है।। 1 ।।
यशुदा नंदन के गुन गावो, उन हीं के रँग में रँग जावो।
कटे बंधन जनम जनम के, मिले साथी मन के उन्हीं को रिझाना है।। 2 ।।