(185) तर्ज - गोरी सांझ
कहन लगी बाल कृष्ण से मैया।। टेर ।।
नन्दपोल चढ़ि टेरत जसुदा, ले ले नाम कन्हैया।
दूर खेलन मत जावो मेरे लाला, मारेगी काहू की गैया।। 1 ।।
अपने आँगन तुलसी को बिरवा, यहाँ खेलो दोनों भैया।
पायल पहन बाबा के सनमुख, नाचो थैया थैया।। 2 ।।
नन्दराय जी से बाबा बोलत, बलदाऊ से भैया।
अपने लाला को ब्याह रचूँगी, लाऊँगी नवल दुल्हैयाँ।। 3 ।।
बहुत भाँति के खेल रचत है, दे देकर बिलुकैयाँ।
‘चन्द्रसखी’ भजु बालकृष्ण छबि, यशुमति लेत बलैया।। 4 ।।